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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 85  ययाति देवयानी को देख रहे थे । वह आसमान से उतरी हुई एक सुन्दर सी देवांगना लग रही थी । उसके सौन्दर्य का जादू कुछ ऐसा था कि सब लोग मंत्रमुग्ध होकर देवयानी को देखते ही रह गये । कवि राजशेखर ने कहा "सम्राट, आपने एक अद्भुत हीरा चुना है अपने जीवन रूपी यात्रा में सहयात्री बनाने के लिए । देवयानी का सौन्दर्य ऐसा था जैसे हजारों चांद और सूरज एक साथ उदय हो गये हों । ययाति एकटक देवयानी को देखते रहे । देवयानी ने भी चोरी चोरी ययाति को देखा था । वधू बनकर खुली नजरों से वर को नहीं देख सकते हैं ना ! सब औरतें कहेंगी कि हाय ! कैसी निर्लज्ज वधू है ? इसी भय के कारण और वधू की गरिमा का अहसास होने के कारण देवयानी चोरी चोरी ययाति को देख रही थी ।

वर के वेश में ययाति बहुत सुन्दर लग रहे थे । उन्नत भाल और उस पर वैष्णव तिलक ! सिर पर मुकुट । सारंग सदृश भौंहें, वृषभ सदृश विशाल नयन, नुकीली मूंछ । रक्ताभ ओष्ठ , श्वेत दंत पंक्ति । उभरे हुए गाल । गर्व से तनी ग्रीवा । चौड़े कंधे और सीना । शक्तिशाली भुजाऐं और लंबे हाथ । गजराज जैसी जंघाऐं । आंखों में अद्भुत तेज । ययाति को देखकर देवयानी को बरबस कच की याद आ गई । कितना अंतर है दोनों में ? कच का व्यक्तित्व ययाति के व्यक्तित्व से कितना पृथक था । ययाति के चेहरे से राजसी प्रभुत्व झलक रहा था जबकि कच के चेहरे से सरलता , भोलापन , विनयशीलता और विद्वता झलकती थी । ययाति का व्यक्तित्व कच के व्यक्तित्व से हजार गुना बेहतर है ।

ययाति जैसे व्यक्ति को पति के रूप में पाकर देवयानी धन्य हो गई थी । अब वह महारानी बनने जा रही है । कच की पत्नी होती तो वह एक अकिंचन ही बनी रहती । अब वह समस्त ऐश्वर्य, संसाधनों का आनंद लेगी । अच्छा हुआ जो कच ने उसे ठुकरा दिया । उसने उसे न केवल ठुकराया वरन् उसे श्राप भी दे दिया कि उसे कोई ब्राह्मण कुमार नहीं अपनायेगा । "छि : ! क्या करना है ब्राह्मण कुमार का ? क्या रखा है एक ब्राह्मण कुमार के पास ? खाने को दो जून का भोजन तक नहीं मिलता है ब्राह्मण कुमार के पास में ! एक कुटिया में समस्त जीवन व्यतीत कर दो ? न पहनने को अच्छे वस्त्र और ना सुरुचिपूर्ण भोजन ! संपत्ति के नाम पर केवल शास्त्र । जिन्हें विक्रय करने पर कोई धेला भी देने को तत्पर नहीं हो । और ब्राह्मण कुमार की ठसक ऐसी कि वे स्वयं को ब्रह्म ही समझने लग जायें । ऐसे ब्राह्मण कुमार से विवाह करके उसे क्या मिलता ? अब उसका विवाह सम्राट ययाति से हो रहा है । ये पल कितने खूबसूरत हैं । उसके जीवन की दिशा बदलने वाले हैं । उसे सुख के सागर में ले जाने वाले हैं । इन पलों के लिए वह किसका धन्यवाद करे ? कच का , शर्मिष्ठा का या अपने पिता शुक्राचार्य का ?

वह मन ही मन शर्मिष्ठा की मूर्खता पर हंस पड़ी । उसके भाग्य की रेखा शर्मिष्ठा के दुर्भाग्य से प्रारंभ होती है । जहां से शर्मिष्ठा का दुर्भाग्य प्रारंभ होता है वहीं से देवयानी का सौभाग्य भी प्रारंभ हो रहा है । यदि शर्मिष्ठा उसे कुंए में नहीं धकेलती तो उसकी मुलाकात ययाति से कैसे होती ? और यदि कच का श्राप नहीं होता तो वह ययाति को पति बनने के लिए क्यों बाध्य करती ? और यदि उसके पिता शुक्राचार्य का बल नहीं होता तो वह शर्मिष्ठा को उसकी दासी बनने पर कैसे बाध्य करती ? संभवत: नियति को भी यही करना था इसीलिए ये सब घटनाऐं एक एक कर घटित हुई हैं । अब इसके लिए किसे उत्तरदायी ठहराया जाये ? चाहे जो उत्तरदायी हो, वह तो एक अकिंचन से एक महारानी बन ही रही है ना ! सम्राट उसके लिए कितना सुन्दर जोड़ा लेकर आये हैं ! आभूषणों के तो अनेक संदूक भरे पड़े हैं । उन्हें देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी । उसे अपने भाग्य पर अभिमान हो आया था । जितनी धन दौलत सम्राट लेकर आये थे उतनी तो दैत्य राज्य में भी नहीं है । शर्मिष्ठा किस बात का गर्व करती थी ? अब तो वह उसके पैरों की जूती के बराबर भी नहीं है ! दासी कहीं की ! शर्मिष्ठा के बारे में सोचने से उसका मन कसैला हो गया ।

शर्मिष्ठा देवयानी के पास उसकी प्रतिकृति के रूप में सदैव रहती थी । देवयानी सबको यह दर्शाना चाहती थी कि पूर्व राजकुमारी अब उसकी दासी है । इससे उसे बहुत चैन मिलता था । शर्मिष्ठा को अपनी स्वामिनी की आज्ञा का पालन करना आवश्यक था इसलिए वह देवयानी के पास ही रहती थी । शर्मिष्ठा यद्यपि दासी बनी हुई थी किन्तु उसका अलौकिक सौन्दर्य दासी के वेष से मेल नहीं खाता था । सब लोग एक नजर देवयानी को देखते थे तो दूसरी नजर से वे शर्मिष्ठा को भी देखते थे । सबकी नजरों का सामना करते करते थक गई थी शर्मिष्ठा । कैसी लोलुप नजरें थीं वे ? क्या एक दासी होना सबकी भोग्या होना है ? आज तक उसका ध्यान कभी इधर गया ही नहीं था । "जा के फटी ना बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई" । शर्मिष्ठा को भी दासियों के जीवन के संबंध में क्या ज्ञान था ? कुछ नहीं । दासियां कितनी पीड़ा झेलती हैं , यह उसे दासी बनकर ही ज्ञात हुआ था । यदि कोई स्त्री दासी है तो क्या वह अपने स्वामी की भोग्या हो गई ? महाराज वृषपर्वा के भी तो हजारों दासियां काम करती हैं परन्तु उन्होंने तो कभी किसी दासी की ओर वासना भरी नजरों से नहीं देखा । क्या दासी की इच्छा, सहमति का कोई मूल्य नहीं है ?

ऐसा सोचते ही एक बार उसके मन में पुरुषों के प्रति घृणा उभर आई । एक पत्न से उनकी काम पिपासा शांत नहीं होती है क्या ? एक पुरुष को अनेक स्त्री क्यों चाहिए ? एक स्त्री को तो अनेक पुरुष नहीं चाहिए । दोनों के विचारों में इतना विभेद क्यों है ? उसने पतिव्रता स्त्रियों के बारे में तो सुना है लेकिन पत्नीव्रता पुरुष के बारे में नहीं सुना । स्त्री ही सच्चरित्र क्यों हो , पुरुष क्यों नहीं ? संभवत: कामनाओं पर नियंत्रण रखने में स्त्रियां पुरुषों से बहुत आगे हैं ।

अचानक उसे ध्यान आया कि वह देवयानी की दासी होने के नाते सम्राट ययाति की भी दासी हो जायेगी । तो क्या सम्राट भी उसे "भोग्या" समझेंगे ? ऐसा सोचकर वह एकदम से लजा गई । उसने मन में सोचा "उसने तो सम्राट को अपना पति चुन लिया है । यदि वे उसे भोग्या समझकर उसे भोग भी लें तो यह उसके लिए अच्छा ही है । पत्नी रूप में न सही , स्वामी रूप में उनसे संसर्ग तो हो सकेगा" । यह सोचकर उसके मन में अनेक सितार बजने लगे । शरीर कंपायमान होने लगा । उसने धीरे से चुपके से एक बार नजरें उठाकर ययाति की ओर देखा । सम्राट भी उसी को देख रहे थे । दोनों की नजरें चार हुईं और शर्मिष्ठा भयभीत होकर वहीं पर धम्म से बैठ गई ।

सम्राट ययाति बहुत देर से देख रहे थे कि देवयानी के पास एक बहुत सुन्दर सी कन्या खड़ी हुई है । बाकी सभी कन्याऐं बैठी हुई हैं मगर एक कन्या खड़ी है । वह कन्या कोई सामान्य युवती नहीं लग रही थी , उसका अप्रतिम सौन्दर्य उसे विशेष बना रहा था । सामान्य वस्त्रों में भी वह असामान्य लग रही थी । सम्राट उस कन्या के बारे में जानना चाहते थे । सम्राट ने इशारे से राजशेखर को कहा कि जरा पता करो कि देवयानी के पास खड़ी वह सुन्दरी कौन है ? राजशेखर को ऐसे कार्यों में महारथ हासिल थी । उसने एक गुप्तचर भेजकर तुरंत पता लगा लिया और सम्राट को बता दिया कि वह राजकुमारी शर्मिष्ठा है जो अब देवयानी की दासी है । सम्राट ययाति शर्मिष्ठा के भाग्य पर तरस खाने लगे । "इस शर्मिष्ठा को मैं भी चाहने लगा था । पर ईश्वर ने तो कुछ और ही विधान लिख रहा है । संभवत: इसीलिए वह आखेट में पथ भूल गया था । इसीलिए कुंए में देवयानी गिर पड़ी थी और उसने उसे बाहर निकाला था । देवयानी ने संभवत: नियति के वश में होने के कारण उससे विवाह का प्रस्ताव रख दिया था । वह भी नियति के वश में होने के कारण उस प्रस्ताव को ठुकरा न सका था । यह शर्मिष्ठा मेरी पत्नी होने वाली थी लेकिन अचानक यह घटनाक्रम होने से देवयानी उसकी पत्नी होने वाली है । ययाति शर्मिष्ठा के प्रति बहुत दयालु हो गया था । एक राजकुमारी दासी बनकर उनकी सेवा कर रही है । बहुत बड़ा हृदय चाहिए इस कार्य के लिए । वह शर्मिष्ठा को अपलक देखने लगा । अचानक शर्मिष्ठा ने भी उसे देख लिया और दोनों की आंखें चार हो गईं । ययाति को वे आंखें करुणा का सागर लगी थीं । शर्मिष्ठा उसे देखते ही सकपका गई थी और नीचे धम्म से बैठ गई थी ।  श्री हरि  30.8.23

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2 Comments

KALPANA SINHA

03-Sep-2023 09:36 AM

Nice

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RISHITA

03-Sep-2023 08:52 AM

Nice

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